IIAS अकादमिक और बौद्धिक उत्कृष्टता का प्रतीक: शुक्ल





शिमला। राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने कहा कि किसी भी संस्थान की असली पहचान न तो उसका भवन होता है और न ही दीवारें, बल्कि उसकी वास्तविक पहचान सदैव उसकी कार्यशैली और उपलब्धियों से प्रदर्शित होती है। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (IIAS), शिमला ने शैक्षणिक और शोध उपलब्धियों से अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है। संस्थान अकादमिक और बौद्धिक उत्कृष्टता का प्रतीक रहा है। राज्यपाल आज यहां ऐतिहासिक भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के शोधार्थियों (अध्येताओं एवं सह-अध्येताओं) को संबोधित कर रहे थे।


राज्यपाल ने कहा कि राष्ट्रीय महत्व का यह संस्थान पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के भारत में ज्ञान और शोध की प्राचीन परंपरा को पुनर्स्थापित करने के स्वपन को साकार कर रहा है। यह हम सभी भारतीयों को अपने देशपर गर्व करने का एक और अवसर प्रदान कर रहा है और लंबे समय से अंतःविषय अनुसंधान और महत्वपूर्ण सोच को बढ़ावा देने में सबसे आगे रहा है। उन्होंने कहा कि यह नवाचार के लिए एक उत्प्रेरक रहा है और इसने हमारे देश के बौद्धिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि यह संस्थान मूलतः मानविकी और सामाजिक विज्ञान में गहन सैद्धांतिक अनुसंधान के लिए समर्पित है। उन्होंने संतोष व्यक्त किया कि संस्थान ने बौद्धिक जिज्ञासा और अकादमिक शोध की भावना को बढ़ावा दिया है।


इससे पहले, राज्यपाल ने संस्थान द्वारा प्रकाशित दो पुस्तकों और केंद्रीय हिंदी निदेशालय की दो अन्य पुस्तकों का विमोचन भी किया।

इस अवसर पर राज्यपाल ने छायाचित्र प्रदर्शनी, पुस्तकालय, वायसराय के कार्यालय एवं कक्ष का अवलोकन किया तथा संस्थान के ऐतिहासिक महत्व में गहरी रुचि दिखाई। राज्यपाल ने पद्मभूषण प्रो. कपिल कपूर को भी सम्मानित किया। आईआईएएस की अध्यक्षा प्रोफेसर शशिप्रभा कुमार ने राज्यपाल का स्वागत किया। 


आईआईएएस के निदेशक प्रोफेसर नागेश्वर राव ने कहा कि संस्थान के पुस्तकालय में 2 लाख पुस्तकों और पत्रिकाओं का संग्रह है और इस वर्ष 13 शोध पुस्तकें प्रकाशित की हैं जबकि 7 प्रकाशनाधीन हैं। संस्थान ऐतिहासिक और शैक्षिक महत्व का है, जहां भारतीय परंपराओं पर आधारित शोध पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। इस अवसर पर संस्थान के पूर्व अध्यक्ष प्रो. कपिल कपूर ने भारत की ज्ञान परंपरा पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हमारी सभ्यता ज्ञान केन्द्रित, संस्कृति मूल्य और समाज कर्तव्य आधारित रही है।



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